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श्री.रामचंद्र कर्मवीर
बीदर, कर्नाटक.
 
फसल का प्रकार : पपीता
खेत का कुल क्षेत्रफल : 2.5 एकड़
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श्री.रामचंद्र कर्मवीर अपनी 2.5 एकड़ ज़मीन पर पपीते की खेती कर रहे हैं। उनके पास पपीते के कुल 3,000 पेड़ हैं। वह बहुत सारे सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे थे, जिसके कारण आखिर उनके खेत में मिट्टी की जल अवशोषण क्षमता कम हो गई। यही नहीं, आखिर में केंचुओं की संख्या भी कम हो गई थी। इसलिए, कुल मिलकर पिछले कुछ वर्षों में उनके खेतों की उत्पादकता में बेहद कमी आई है।
उन्हें नेटसर्फ नेटवर्क द्वारा लाए गए बायोफिट के जैविक कृषि उत्पादों के बारे में पता चला। उनके फ़ायदे जानने के बाद, श्री कर्मवीर ने अपने खेत में बायोफिट प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल की कोशिश करने का फैसला किया। शुरुआत में, उन्होंने 1 लीटर प्रति एकड़ की मात्रा के साथ बायोफिट SHET और बायोफिट N, P और K का छिड़काव किया। उसके बाद उन्होंने हर महीने की पहली तारीख पर बायोफिट स्टिमरिच और बायो-99 का छिड़काव शुरू किया। उन्होंने महीने में दो बार पौधों और पेड़ों पर बायोफिट व्रैप-अप का भी छिड़काव किया।

इन सभी बदलावों ने खेत में आशाजनक परिणाम दिखाना शुरू कर दिया। मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि हुई जिससे मिट्टी में दिखाई देने वाले केंचुओं की संख्या में भी वृद्धि हुई। केंचुओं ने मिट्टी को सरस बना दिया। बायोफिट स्टिमरिच के कारण पत्तियों का आकार बढ़ गया, फूलों का गिरना भी बंद हो गया और फूलों की संख्या के साथ ही फलों की संख्या में भी बढ़त हुई। बायोफिट व्रैप-अप की बदौलत फलों पर सफ़ेद फफूंद या उस जैसे किसी रोग का प्रभाव नहीं पड़ा। श्री कर्मवीर ने चुसक कीटों की रोकथाम के लिए 2 बार इन्टैक्ट का भी छिड़काव किया। साथ ही उनके गांव के दूसरे किसानों की तुलना में सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों पर उनका खर्च कम हो गया।
बायोफिट प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल के पहले और बाद में-
पहले पपीते की फसल :
  • प्रति एकड़ लागत: रु. 1,10,000
  • औसत पैदावार: 21 टन प्रति एकड़
  • बिक्री दर: रु. 10 प्रति किलो (एक पपीते का औसत वज़न 1.5 किलो था)
  • प्रति एकड़ शुद्ध लाभ: रु. 1,00,000
बायोफिट के साथ पपीते की फसल :
  • प्रति एकड़ लागत: रु. 1,15,000
  • औसत पैदावार: 24.5 टन प्रति एकड़
  • बिक्री दर: रु. 12 प्रति किलो
  • प्रति एकड़ शुद्ध लाभ: रु. 1,79,000
आज, श्री कर्मवीर गर्व से दूसरे किसानों को सलाह देते हैं कि वे कम से कम सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करें और खेत की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जैविक खेती के तरीकों को अपनाएं। इसे वह हर किसान की सामाजिक ज़िम्मेदारी बताते हैं।